लेखनी प्रतियोगिता -27-Apr-2024
#दिनांक:-27/4/2034
#शीर्षक:-उम्मीद
हाँ निस्वार्थ था मेरा प्रेम
तुमने समझने में भूल की,
मुझमें घुलने की जिद की,
मुझे आजमाने की चाह की,
चुनौतीपूर्ण राह की....!
आह....!
क्यूँ तोड़ा मेरा भरोसा,
क्यूँ दिल को चोटिल किया,
क्यूँ जताया 'हम तुम्हारे है',
क्यूँ भावना को आहत किया....!
उफ्फ....!
कैसे सहन करूँ दिल की चीखे,
समन्दर हुई आँखों में जलन,
किसी की सुन पायी नहीं,
तुमको सुना पायी नहीं,
कैसा लगाव था तेरा,
तेरा दिया घाव,
तुमको ही दिखा पायी नहीं....!
सुनो....!
तेरी बाते हमे सताती है,
तेरी रुसवाई हमे खलती है,
बैरी कहूँ या हरजाई पिया,
अभी भी,
उम्मीद में दिन-रात साँसें चलती है....||
रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिक सुरक्षित है|
"प्रतिभा पाण्डेय" चेन्नई
Gunjan Kamal
30-Apr-2024 08:16 AM
शानदार
Reply
Varsha_Upadhyay
27-Apr-2024 10:45 PM
Nice
Reply
Babita patel
27-Apr-2024 09:36 PM
Amazing
Reply